MA Semester-1 Sociology paper-II - Perspectives on Indian Society - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2682
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

प्रश्न- भारतीय समाज के बाँधने वाले सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र की विवेचना कीजिए।

अथवा
लोक नगरीय सातत्व की विवेचना कीजिए।
अथवा
भारतीय समाज को बाँधने वाले सम्पर्क, सूत्रों एवं तत्रों के गहनीकरण के लिये उत्तरदायी कारकों को स्पष्ट कीजिये।

उत्तर -

भारतीय समाज में क्षेत्रों, समूहों एवं समुदायों को बाँधने वाले कुछ ऐसे सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र विद्यमान हैं जिससे भारतीय समाज में एकीकरण एवं अभिसरण पाया जाता रहा है तथा आज भी है। एकीकरण से अभिप्राय विविधताओं के बावजूद ऐसे सामान्य सम्पर्क-सूत्रों एवं तन्त्रों की विद्यमानता है जो किसी समाज के सदस्यों को एक सूत्र में बाँधते हैं। अभिसरण शब्द भी एकीकरण से मिलता-जुलता शब्द है। इसका अर्थ विभिन्न विचारधाराओं का एक सामान्य बिन्दु पर मिलना है। जब विभिन्न विचारधाराओं, भौतिक लक्षणों, सांस्कृतिक विशेषताओं, भाषाओं एवं क्षेत्रीयय भिन्नताओं के लोग एक सामान्य दृष्टिकोण प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, तो उसे अभिसरण कहा जाता है। यह एकीकरण की ओर पहला कदम माना जाता है। अभिसरण के बिना एकीकरण सम्भव नहीं है। भारतीय समाज में भी कुछ ऐसा ही हुआ है।

विविधता सदैव एकीकरण को जन्म देती है और यही भारत में भी हुआ है। हमारे देश में यह बात सदैव गलत सिद्ध होती रही है कि विविधता राष्ट्रीय और सामाजिक विघटन उत्पन्न करती है। इस देश में विविधताओं को विघटन की प्रक्रिया से नहीं जोड़ा जा सकता, वरन् देश में पाई जाने वाली विविधता ने ही देश को एक सूत्र में बाँधने का काम किया है। इन विविधताओं ने निम्नवर्णित रूप से एकता स्थापित करने में सहयोग दिया है -

(1) भौगालिक सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र (Geographical linkages and networks) - यूँ तो भौगोलिक दृष्टि से भारतीय जनजीवन बहुत भिन्न है। प्राकृतिक दृष्टि से यह देश अनेक टुकड़ों में बँटा है, परन्तु उसके भीतर एकता निहित है। उत्तर में हिमालय पहाड़ और तीनों ओर से घेरे हुए विशाल समुद्र, भारत को संसार के अन्य देशों से अलग करते रहे हैं। फलस्वरूप यहाँ रहने वाले निवासी अपने में अलग रहते हुए भी एकता का अनुभव करते रहे हैं। भौगोलिक दृष्टि से भारत की निश्चित सीमाएँ इसे एक पृथक् इकाई बनाती हैं। ऋतुओं का निश्चित क्रम भी भौगोलिक एकता की ओर इंगित करता है। जब कभी भी बाह्य संस्कृतियों से सम्पर्क और युद्ध आदि का मौका आया है तब देश के निवासियों ने अपने आप को सदैव एक समझा है।

(2) धार्मिक सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र (Religious linkages and networks) - धार्मिक दृष्टि से भी इस देश में बड़ी विविधता है। यहाँ अनेक धर्म और सम्प्रदाय हैं। सच तो यह है कि भारत जैसे आध्यात्मिक देश में धर्म हमारी सबसे बड़ी सांस्कृतिक सम्पत्ति रही है। सभी धर्मों और पन्थों के सिद्धान्त प्रायः एक ही हैं। विचारकों ने ईश्वर या मोक्ष प्राप्ति के तीन ही तरीके बतलाए हैं - ज्ञान, कर्म एवं योग। योग में भक्ति और साधना दोनों ही सम्मिलित हैं। कर्म का आशय सदाचरण है। ज्ञान भ्रम और अन्धविश्वासों को हटाता है और सत्य के मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा देता है। भारत में पाए जाने वाले सभी धर्म इन्हीं तीन में से किसी एक मार्ग को लेकर चलते हैं। भारतीय धर्म एक प्रकार से सभी धर्मों का समन्वय है। सब धर्म मोक्ष, कर्म, पुनर्जन्म और ईश्वरवाद के सिद्धान्तों को मानते हैं। सभी धर्मों में पूजा, उपासना की जो सामग्री है वह प्रायः समान है तथा मान्यताएँ भी प्रायः एक हैं। जीवन-पथ के संस्कार भी लगभग एक ही हैं। इस प्रकार, सदैव से यहाँ धार्मिक एकता बनी हुई है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करना, इसमें पाई जाने वाली धार्मिक एकता का ही सूचक है।

(3) प्रजातीय सम्पर्क-सूत्र एवं तन्त्र (Racial linkages and networks) - भारतीय संस्कृति में प्रजातीय विविधता भी रही है, परन्तु इसके निर्माण में सभी प्रजातियों का योगदान रहा है। आज जो संस्कृति हमें देखने को मिलती है उसमें कम-से-कम पाँच प्रजातियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। डी० एन० मजूमदार (D. N. Majumdar) के अनुसार, भारत में सबसे पुरानी प्रजाति प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड है और भारतीय संस्कृति के निर्माण में इसका बड़ा योगदान रहा है। वर्तमान की सभी जनजातियाँ इस प्रजाति की प्रतिनिधि कही जा सकती हैं। अस्त्र-शस्त्र के निर्माण में इसने अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। भाषा, कृषि और देवी-देवताओं की पूजा आदि पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट पड़ा है। हमारी संस्कृति को कृषि, कला एवं पशुपालन इसी की देन है। सिन्दूर का उपयोग और पान-सुपारी का प्रचलन आदि भी इसी की देन हैं। पुनर्जन्म, पौराणिक कहानियाँ, मूर्ति पूजा करना भी इसी प्रजाति से हमारी संस्कृति में आया है। मंगोल प्रजाति चीन से भारत में आई और इसका प्रभाव भी इस संस्कृति पर महत्त्वपूर्ण रूप से पड़ा है। पैसे भारत में रहने वाले मंगोल यहाँ रहने वाली आदिवासी पूर्व-द्रविड़ प्रजाति से प्रभावित हुए हैं। जॉर्ज ग्रियर्सन के अनुसार, मंगोलों की भाषाओं पर पूर्व-द्रविड़ प्रजाति का प्रभाव पड़ा है, पर इन लोगों ने उत्तर भारत में रहने वाले लोगों की संस्कृति को बहुत प्रभावित किया। मूलतः गोरखाली, असमिया और बांगला भाषाओं पर इनका स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। कुछ विद्वान यह मानते हैं कि हमारी संस्कृति में तन्त्रवाद इसी संस्कृति की देन है, जो आज तक प्रचलित है। इसके अतिरिक्त चाय, सीढ़ीदार खेती और शिकार आदि का प्रचलन इसी प्रजाति की देन है।

भारतीय संस्कृति के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान आर्य प्रजाति का रहा है। हॉबेल (Hoebel) ने इसे आक्रमणकारी समूह के रूप में माना है। उनके अनुसार यह आक्रमणकारी समूह प्रमुखः चरागाही एवं पशुपालन की संस्कृति से सम्बन्धित रहा है। इसका सर्वाधिक प्रभाव भाषा पर पड़ा है। इनकी ही भाषा आज 'संस्कृत' कहलाती है। इन्होंने ही मूलतः भारतीय समाज के विविध ता के रूप को संगठित स्वरूप प्रदान किया। यहाँ यह बड़ी महत्त्वपूर्ण बात है कि अपने इस प्रयास में आर्य प्रजाति ने स्वयं के प्रभुत्व और स्व-परिचय के रूप को खो दिया। भारतीय संस्कृति और समाज को परिवर्तित रूप प्रदान करने के साथ-साथ आर्य प्रजाति खुद बदल गई।

इसी प्रकार, बाद में आने वाले अरब, तुर्क, मुगल एवं अंग्रेज सभी ने अपनी-अपनी अनूठी विशेषताएँ भारतीय संस्कृति के महासागर में जोड़ी हैं। भारतीय संस्कृति की समन्वयवादी प्रवृत्ति ने एक ऐसी संस्कृति को जन्म दिया है जो किसी एक प्रजाति की देन नहीं कही जा सकती। भारत को प्रजातियों को गलाने का बर्तन कहा गया है। यह कथन पूर्णतः सही है। प्रजातीय एकता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आज भारत में कोई एक विशुद्ध प्रजाति विद्यमान नहीं है। रक्त मिश्रण ने भारतीयों को एक निजी रूप-रंग और आकार प्रदान किया है। सम्भवतः यही कारण है कि हमारे समाज में प्रजातिवाद जैसी समस्या नहीं है।

(4) राजनीतिक सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र (Political linkages and networks) - भारतीय संस्कृति में अनेक विविधताएँ होते हुए भी राजनीतिक एकता पाई जाती है। केन्द्र में एक मजबूत सरकार है तथा सभी प्रदेश राजनीतिक सत्ता द्वारा परस्पर एवं केन्द्र से जुड़े हुए हैं। राजनीतिक दृष्टि से हमारा देश एक पूर्ण इकाई है। लोकसभा और राज्यों की विध नसभाओं के लिए सभी क्षेत्रों से प्रतिनिधि चुने जाते हैं। सभी वयस्कों (18 वर्ष से ऊपर) को वोट देने तथा चुनाव लड़ने का एक समान अधिकार प्राप्त है। राजनीतिक जागरूकता एवं राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाएँ भारतीय समाज एवं संस्कृति को राजनीतिक दृष्टि से और अधिक सबल बनाने में सहायता कर रही हैं।

(5) ग्रामीण-नगरीय सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र (Rural-urban linkages and networks)- अन्य पहलुओं में भी भारतीय संस्कृति में पाई जाने वाली एकता को देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए - आज ग्रामीण तथा नगरीय सम्पर्क इतना अधिक बढ़ गया है कि दोनों में अन्तर करना कठिन है। जनजातियों को राष्ट्रीय विचारधारा में सम्मिलित करने के प्रयासों में निरन्तर सफलता मिलती जा रही है। यद्यपि भारत में अनेक भाषाएँ हैं फिर भी संस्कृत अधिकतर भाषाओं की जननी है तथा हिन्दी सम्पर्क भाषा के रूप में विकसित होती जा रही है। स्थानीय भाषाओं का अपना पृथक् एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा, औद्योगीकरण, नगरीकरण, पश्चिमीकरण तथा संचार व आवागमन के साधनों में विकास के कारण राजनीतिक जागरूकता बढ़ती जा रही है तथा इसके साथ एकता की भावना भी अधिक मजबूत होती जा रही है।

ब्रज राज चौहान ने उन सम्पर्क-सूत्रों एवं तन्त्रों का वर्णन किया है जिन्होंने भारत में विभिन्न गाँवों, समूहों एवं समुदायों को जोड़े रखने में सहायता प्रदान की है। उनके अनुसार ऐसे परम्परागत सम्पर्क-सूत्र एवं तन्त्र प्रमुख रूप से पाँच हैं -

(1) सामाजिक सम्पर्क-सूत्र (Social linkages and networks) - भारतीय ग्रामीण समुदायों में प्रायः ग्राम बहिर्विवाह का नियम (Village exogamy) रहा है। गाँव के लड़के-लड़कियों की शादी गाँव से बाहर होती है। अतः गाँव परस्पर नातेदारियों से बँध जाते हैं। इतना ही नहीं, कभी-कभी बाहर के लड़के घर जँवाई के रूप में गाँव में आकर बसते रहे। इसके अतिरिक्त, जाति के आधार पर भी बाह्य ग्रामों के साथ परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध रहे हैं। अनेक जातियाँ ऐसी हैं जो कुछ निश्चित गाँवों में अपनी बिरादरी-पंचायत, कुदरिया, चौखला या खॉप जैसे संगठन बना लेती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों में वंश के आधार पर अनेक गाँवों की एक 'देश खॉप' या 'सर्वखॉप' बनाई जाती है जो बड़ी शक्तिशाली संरचना है।

(2) आर्थिक सम्पर्क-सूत्र (Economic linkages and networks) - ग्रामीण क्षेत्रों के परम्परागत हाट व बाजार कई ग्रामों के लोगों के मिलने के स्थल थे। इसी भाँति, पशु-‍ जैसे विशिष्ट बाजार पूरे क्षेत्र के लोगों के लिए आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे। घूमने वाली दुकानें नई वस्तुओं के बारे में ग्रामीणों के लिए जानकारी का स्रोत थी। इसके अतिरिक्त, जब कोई नया गाँव बसता था तो वहाँ सेवक जातियों अथवा कामगारों को बाहर से लाया जाता था। धीरे-धीरे ऐसे बाहरी लोग गाँव के सदस्य के रूप से वहाँ के स्थायी निवासी बन जाते थे। इस भाँति, सुनार, लोहार जैसी अनेक जातियाँ एक गाँव में ही नहीं, बल्कि एक से अधिक गाँवों को अपनी सेवाएँ प्रदान करती थीं।

(3) धार्मिक सम्पर्क-सूत्र (Religious linkages and networks) - किसी गाँव का कोई महात्मा अथवा पूजा-स्थल प्रसिद्ध हो जाते थे और पड़ोस के अनेक गाँवों के लोग उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने अथवा रोग से मुक्ति प्राप्त करने या भूत-बाधा से छुटकारा पाने या अन्य किसी आपदा से बचने के उपाय हेतु या ज्ञान अथवा शान्ति की खोज में उनके पास आते जाते रहते थे। प्रायः पुरोहितों के जजमान भी एक से अधिक गाँवों में फैले होते थे। धार्मिक मेले (देवी-देवताओं से सम्बन्धित) और तीर्थ-प्रथा, जैसे कि पास की किसी नदी पर नियतकालिक स्नान मेला आदि भी जनजाति कृषक-नगरीय अन्तर्क्रिया के आधार थे। संन्यासियों की प्रथा भी परम्परागत जन संचार के महत्त्वपूर्ण माध्यम के रूप में क्रियाशील रही है।

(4) राजनीतिक सम्पर्क-सूत्र (Political linkages and networks) - राज्य का सम्पर्क सदा ही ग्रामों से रहा है। लगान उगाहने की दृष्टि से कोई-न-कोई व्यवस्था गाँव और राज्य को परस्पर जोड़ती रही है। ऐसी व्यवस्था के रूप में नवाबों, जागीरदारों, जमींदारों को गिनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, एक जाति-बहुल क्षेत्रों में, जाति की बृहद् पंचायतों का भी पता चलता है, जैसे चौबीस गाँवों की चौबीसी या साठ गाँवों का साठा। सिंचाई के साधनों पर भी राज्य का नियन्त्रण रहा है। सेना के लिए भी भर्ती प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों से होती है। प्रशासन व सेना के केन्द्र नगरों में थे और गाँव उनके नियन्त्रण-क्षेत्र की इकाइयाँ थे।

(5) सांस्कृतिक सम्पर्क-सूत्र (Cultural linkages and networks) - ब्रज राज चौहान के शब्दों में, "सांस्कृतिक जीवन भी प्रादेशिक परम्पराओं को आगे बढ़ाता है। किसी नगर की रासलीला प्रसिद्ध है, तो कहीं की रामलीला, या कहीं की झाँकियाँ। इन्हीं नगरों में पूजा की सामग्री, शंख, माला, घंटियाँ मिलती हैं; और भजन या धार्मिक कथाओं की पुस्तकें।" आस-पड़ोस के ग्रामीण इन सभी सांस्कृतिक कारकों के कारण भी नगरों में आते रहे हैं।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भारतीय जनजाति या कृषक एवं नगर कभी भी पूर्णतया आत्म-निर्भर, पृथक् और एकाकी नहीं रहे हैं। उनके बीच अन्तर्क्रियाओं का सातत्य रहा है। मैकिम मेरियट ने इन्हीं सम्पर्कों के आधार पर ही महान् सांस्कृतिक परम्पराओं के स्थानीयकरण (Parochialization) और लघु परम्पराओं के सार्वभौमिकरण की प्रक्रियाओं का वर्णन किया है। एम०एन० श्रीनिवास ने यह सिद्ध किया है कि निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों का अनुकरण कर उच्चता का दावा प्रस्तुत करना, अर्थात् संस्कृतिकरण भी ऐसे सम्पर्कों के कारण ही है। यह बात सही है कि ऐसी अन्तर्क्रियाएँ पहले इतनी गहन और व्यापक नहीं थी जितनी कि आज हैं। आधुनिक युग में जनजाति-कृषक-नगरीय अन्तर्क्रियाओं का व्यापक गहनीकरण हुआ है। नई संरचना और विकास कार्यक्रमों ने उनके बीच तीव्रता अन्तक्रियाओं को बढ़ाया है। पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत सामुदायिक विकास कार्यक्रम, परिवार नियोजन, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर आध शारित नियतकालिक चुनाव, सत्ता का विकेन्द्रीकरण, दलगत राजनीति, सरकार की अनुसूचित जातियों व जनजातियों के उत्थान के लिए अपनायी गई सुरक्षात्मक भेदभाव की नीति तथा समाज कल्याण सम्बन्धी अनेक योजनाओं आदि ने जनजाति-कृषक-नगरीय अन्तर्क्रियाओं को तीव्रतर कर दिया है। आधुनिक युग में इन अन्तर्क्रियाओं के गहनीकरण के कारकों की तनिक विस्तार से चर्चा करना सन्दर्भ से परे नहीं होगा क्योंकि उन्हीं के प्रकाश में हम समसामयिक स्थिति को यथार्थ रूप से समझ सकते हैं।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- लूई ड्यूमाँ और जी. एस. घुरिये द्वारा प्रतिपादित भारत विद्या आधारित परिप्रेक्ष्य के बीच अन्तर कीजिये।
  2. प्रश्न- भारत में धार्मिक एकीकरण को समझाइये। भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले चार लक्षण बताइये?
  3. प्रश्न- भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले लक्षण बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय संस्कृति के उन पहलुओं की विवेचना कीजिये जो इसमें अभिसरण. एवं एकीकरण लाने में सहायक हैं? प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये?
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  6. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  7. प्रश्न- आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  8. प्रश्न- समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  9. प्रश्न- भारतीय समाज के बाँधने वाले सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- परम्परागत भारतीय समाज के विशिष्ट लक्षण एवं संरूपण क्या हैं?
  11. प्रश्न- विवाह के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- पवित्रता और अपवित्रता के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की चर्चा कीजिये।
  13. प्रश्न- शास्त्रीय दृष्टिकोण का महत्व स्पष्ट कीजिये? क्षेत्राधारित दृष्टिकोण का क्या महत्व है? शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  14. प्रश्न- शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  15. प्रश्न- इण्डोलॉजी से आप क्या समझते हैं? विस्तार से वर्णन कीजिए।.
  16. प्रश्न- भारतीय विद्या अभिगम की सीमाएँ क्या हैं?
  17. प्रश्न- प्रतीकात्मक स्वरूपों के समाजशास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  18. प्रश्न- ग्रामीण-नगरीय सातव्य की अवधारणा की संक्षेप में विवेचना कीजिये।
  19. प्रश्न- विद्या अभिगमन से क्या अभिप्राय है?
  20. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य से आप क्या समझते हैं? सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख 'विशेषतायें बतलाइये? प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये?
  21. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख विशेषतायें बताइये?
  22. प्रश्न- प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- प्रकार्यवाद से आप क्या समझते हैं? प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये?
  24. प्रश्न- प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
  25. प्रश्न- दुर्खीम की प्रकार्यवाद की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये? दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये? मर्टन की प्रकार्यवाद की अवधारणा को समझाइये? प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  26. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये?
  27. प्रश्न- प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  28. प्रश्न- "संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य" को एम. एन. श्रीनिवास के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
  29. प्रश्न- डॉ. एस.सी. दुबे के अनुसार ग्रामीण अध्ययनों में महत्व को दर्शाइए?
  30. प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में एस सी दुबे के विचारों को व्यक्त कीजिए?
  31. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के ग्रामीण अध्ययन की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  32. प्रश्न- एस.सी. दुबे का जीवन चित्रण प्रस्तुत कीजिये व उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  33. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के अनुसार वृहत परम्पराओं का अर्थ स्पष्ट कीजिए?
  34. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे द्वारा रचित परम्पराओं की आलोचनात्मक दृष्टिकोण व्यक्त कीजिए?
  35. प्रश्न- एस. सी. दुबे के शामीर पेट गाँव का परिचय दीजिए?
  36. प्रश्न- संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- बृजराज चौहान (बी. आर. चौहान) के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में बताइए।
  38. प्रश्न- एम. एन श्रीनिवास के जीवन चित्रण को प्रस्तुत कीजिये।
  39. प्रश्न- बी.आर.चौहान की पुस्तक का उल्लेख कीजिए।
  40. प्रश्न- "राणावतों की सादणी" ग्राम का परिचय दीजिये।
  41. प्रश्न- बृज राज चौहान का जीवन परिचय, योगदान ओर कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  42. प्रश्न- मार्क्स के 'वर्ग संघर्ष' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये? संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  43. प्रश्न- संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  44. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं? मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  45. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  46. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य में क्या योगदान है?
  48. प्रश्न- ए. आर. देसाई द्वारा वर्णित राष्ट्रीय आन्दोलन का मार्क्सवादी स्वरूप स्पष्ट करें।
  49. प्रश्न- डी. पी. मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  50. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- मुकर्जी ने परम्पराओं का विरोध क्यों किया?
  52. प्रश्न- परम्पराओं में कौन-कौन से निहित तत्त्व है?
  53. प्रश्न- परम्पराओं में परस्पर संघर्ष क्यों होता हैं?
  54. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक सांस्कृतिक समन्वय कैसे हुआ?
  55. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या है?
  56. प्रश्न- मार्क्स और हीगल के द्वन्द्ववाद की तुलना कीजिए।
  57. प्रश्न- राधाकमल मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  58. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या हैं?
  59. प्रश्न- रामकृष्ण मुखर्जी के विषय में संक्षेप में बताइए।
  60. प्रश्न- सभ्यता से आप क्या समझते हैं? एन.के. बोस तथा सुरजीत सिन्हा का भारतीय समाज परिप्रेक्ष्य में सभ्यता का वर्णन करें।
  61. प्रश्न- सुरजीत सिन्हा का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृतियाँ बताइये।
  62. प्रश्न- एन. के. बोस का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृत्तियाँ बताइये।
  63. प्रश्न- सभ्यतावादी परिप्रेक्ष्य में एन०के० बोस के विचारों का विवेचन कीजिए।
  64. प्रश्न- सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  65. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- भारतीय समाज को समझने में बी आर अम्बेडकर के "सबआल्टर्न" परिप्रेक्ष्य की विवेचना कीजिये।
  67. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किये गये धार्मिक कार्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  68. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किए गए शैक्षिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  69. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : (1) दलितों की आर्थिक स्थिति (2) दलितों की राजनैतिक स्थिति (3) दलितों की संवैधानिक स्थिति।
  70. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर का जीवन परिचय दीजिये।
  71. प्रश्न- डॉ. अम्बेडर की दलितोद्धार के प्रति यथार्थवाद दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के वैचारिक स्वरूप एवं पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के माध्यम से अध्ययन किए गए देवी आन्दोलन का स्वरूप स्पष्ट करें।
  74. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य से अपने अध्ययन का विषय बनाये गए देवी 'आन्दोलन के परिणामों पर प्रकाश डालें।
  75. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन के दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
  76. प्रश्न- अम्बेडकर के सामाजिक चिन्तन के मुख्य विषय को समझाइये।
  77. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के विचारों एवं कार्यों का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।

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